पुरूषार्थ ही सफलता की शर्त है

पुरूषार्थ ही सफलता की शर्त है

पुरूषार्थ ही सफलता की शर्त है

यह प्रेरणादायक कहानी अमेरिका के जंगलों में रहने वाले एक नवयुवक की है, जो अपने कठिन जीवन में भी शिक्षा पाने के लिए दृढ़ निश्चय रखता था। पुस्तकालय से दस मील दूर जाकर, लकड़ी जलाकर पढ़ने का उनका प्रयास उनकी मेहनत और समर्पण को दर्शाता है।

पुरूषार्थ ही सफलता की शर्त है :

अमेरीका के एक जंगल में एक नवयुवक दिन में लकड़ियाँ काटता था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन गरीब था। नजदीक में कोई विद्यालय नहीं था। अन्ततः उसने अपने से ही पढ़ने का निश्चय किया। पुस्तकालय भी दस मील दूर था। उसने निश्चय किया कि वह पुस्तकालय से किताबें लाकर पढ़ेगा। वह अपने काम से छुट्टी पाकर दस मील दूर जाकर किताबें लाता, लकड़ी जलाकर पढ़ता और समय से पूर्व किताबें लौटा देता।

पढ़-लिखकर अंततः वह वकील बना। उसने स्थानीय अदालत में वकालत शुरू की, लेकिन वकिल के रूपा में भी वह अपने को सही स्वरूप मे नहीं रख पाता। उसके पास पैसे नहीं थे, कपड़ों को दुरूस्त कैसे रखें? उसके एक मित्र स्टैन्टन ने व्यंग्य किया- तू वकील तो लगता ही नहीं, लगता है उज्जड देहाती – वकालत कैसे चलेगी? उसने कहा- ‘चले या न चले क्या करूँ। मैं केवल पोशाक में ही विश्वास नहीं करता। विश्वास है एक बात में कि मैं झूठा मुकदमा नहीं लूँगा।’

सीख (Moral of The Story)
कठिन परिस्थितियों में भी अपने मूल्यों और नीतियों पर दृढ़ रहना। यह हमें सिखाती है कि सच्चाई, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प के साथ अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करें, चाहे रास्ते में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं। बाहरी दिखावे से ज़्यादा महत्वपूर्ण हमारे भीतर का विश्वास और नैतिकता है।

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