मेहनत की रोटी

यह कहानी गुरू नानक जी की गहरी आध्यात्मिक दृष्टि और समाज में समानता के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रकट करती है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि सच्चे धर्म में कर्म और ईमानदारी का स्थान है, न कि भौतिक संपदा और शोषण का।
मेहनत की रोटी :
गुरूनानक जी एकदिन एक साधारण बढ़ई लालो की गुरूभक्ति से प्रसन्न होकर उसके यहाँ ठहर गए। इसकी खबर उस इलाके के प्रमुख मलिक भागो के कानों तक पहुँची। तब समाज में ऊँच-नीच की भावना व्याप्त थी। भागो यह कैसे सहन करे कि एक संत एक बढ़ई के घर में निवास करें। उन्होंने तुरन्त अपने यहाँ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया।
उस समय गुरू जी भजन गा रहे थे और उनका शिष्य मर्दाना रवाब बजा रहा था। उन्होंने मलिक भागो से कहा, ‘मैं आपके यहाँ भोजन ग्रहण नहीं करूँगा।’ भागो अपमान से जलने लगा। पूछा, ‘आखिर क्यों? क्या मैं इससे भी नीच हूँ।’
गुरू जी ने कहा, ‘ठीक है, अपनी खाद्य सामग्री दे दो।’
गुरू जी ने उसे अपने हाथों में लेकर निचोड़ा। अरे यह क्या? खून निकलने लगा।
उन्होंने लालो से अपना भोजन मँगवाया। वही रूखी सूखी रोटी और साग। उसे निचोड़ने लगे- दूध की धारा? गुरू जी ने कहा अब समझे तेरी कमाई पसीने की नहीं, शोषण की कमाई है। बेचारा मलिक भागो लज्जित हो गया।
सीख (Moral of The Story)
ईमानदारी की महत्ता: लालो की कमाई पसीने और मेहनत की थी, इसलिए वह दूध की तरह शुद्ध थी।
शोषण का परिणाम: मलिक भागो की कमाई शोषण पर आधारित थी, इसलिए वह खून की तरह थी।
समानता और भाईचारे का संदेश: उन्होंने दिखाया कि सच्चा सम्मान किसी की जाति या सामाजिक स्थिति से नहीं, बल्कि उनके कर्म और चरित्र से होता है।