विक्रम बेताल की कहानी: ब्राह्मण कुमार की कथा

विक्रम बेताल की कहानी: ब्राह्मण कुमार की कथा

विक्रम बेताल की कहानी: ब्राह्मण कुमार की कथा

यह उज्जैन के एक ब्राह्मण वासुदेव के बेटे गुणकार की कहानी है। नाम से गुणकार होने के बावजूद भी उसमें कोई भी खास गुण नहीं थे। वह जुए जैसे गंदी लत में डूबा रहता था और अपने पिता के पैसे बर्बाद करता था। इसी वजह से उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया। दूसरे राज्य में गुणकार का सामना एक सिद्ध पुरुष से हुआ। उसने उसे कुछ दिनों की पनाह दी। उसी दौरान गुणकार ने सिद्ध पुरुष की शक्ति देखी और उसने भी वो विद्या हासिल करनी चाही। लेकिन विद्या के सभी पड़ाव पूरा करने के बाद भी उसे वो विद्या सही से हासिल नहीं हुई। इसके पीछे गुणकार का लालच था या उसकी गलती इसका सही जवाब राजा विक्रमदित्य ने बेताल को कहानी के अंत में बताया। ऐसी ही रोचक कहानियों को पढ़ने के लिए आप www.lyricsstore.in इस वेबसाइट पर जाकर बच्चों की बेहतरीन कहानियां पढ़ सकते हैं।

ब्राह्मण कुमार की कथा: 

राजा विक्रमादित्य एक बार फिर से बेताल का पीछा करते हुए पेड़ के पास पहुंचे और बेताल को अपने कंधे पर बिठाकर चलने लगे और तभी बेताल ने एक और कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
कुछ साल पहले की बात है, उज्जैन में राजा महासेन का राज्य था। वहीं वासुदेव नामक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहा करता था। वासुदेव के बेटे का नाम गुणकार था, लेकिन उसमें पाए जाने वाले कोई भी गुण नहीं थे। उसे सिर्फ दिन-रात जुआ खेलने की लत थी। हर दिन वह जुए में अपने पिता की मेहनत की कमाई हार जाया करता था। उसकी दो बहनें भी थीं। लेकिन वह उनका भी ध्यान नहीं रखता और बस जुआ खेलने में मग्न रहा करता था।

अपने बेटे की इस हरकत से ब्राह्मण बेहद चिंतित रहता था। उसने सोचा जो भी कमाई वो करता है, उसका बेटा सब कुछ जुए में उड़ा देता है। इसी कारण उसने गुणकार को घर से बाहर कर दिया। घर से निकाल दिए जाने के बाद वह दूसरे राज्य पहुंच गया। वहां वह भूख और प्यास से बेहाल था, उसे न कोई काम मिल रहा था और न ही कुछ खाने को। ऐसी हालत में वह एक दिन बेहोश हो गया। तभी वहां से गुजर रहे सिद्ध व्यक्ति ने उसे देखा और उसे अपनी गुफा में ले आया। जब गुणकार को होश आया, तो सिद्ध पुरुष से उसे पूछा, क्या खाना चाहोगे। गुणकार ने कहा, आप एक योगी है, जो आपके पास मौजूद होगा वही आप खिला पाएंगे। मुझे जो खाना है वो आपके पास नहीं होगा। योगी ने कहा, बस इतना बताओ तुम्हें क्या खाना है।
योगी की बात सुनकर गुणकार ने अपने खाने की इच्छा को बताया, जिसे सुनने के बाद योगी ने अपनी शक्ति से उसके सामने उसकी पसंद का खाना पेश कर दिया। ये सब देखकर ब्राह्मण के बेटे को बहुत हैरानी हुई, लेकिन पहले उसने खाना खाया और फिर योगी से कहा, ये चमत्कारी काम अपने कैसे किया। योगी ने कुछ नहीं बोला और अंदर जाने का इशारा किया। जैसे वह अंदर पहुंचा उसे वहां एक विशाल महल और बहुत सी दासियां दिखाई दी। सबने उसकी अच्छे से खातिरदारी की और वह बाद में सो गया।

जब गुणकार सोकर उठा तो उसने योगी से फिर से वही सवाल पूछा। योगी ने उसे जवाब देते हुए कहा, तुम्हें ये जानकर क्या करना है, तुम यहां कुछ दिनों के मेहमान हो इन सभी सुविधाओं का मजा लो। लेकिन गुणकार जिद पर अड़ गया और बोला कि वह भी सिद्धि हासिल करना चाहता है। उसकी जिद से परेशान होकर योगी ने उसे विद्या सिखाई और कहा अब मन लगाकर साधना करना।
कुछ दिनों बाद जब गुणकार अपनी साधना पूरी कर के लौटा,  तो योगी ने उससे कहा –

“तुम सब बहुत अच्छे से कर रहे हो। यह पहला पड़ाव था, जिसे बहुत अच्छे से तुमने पूरा किया। अब तुमको दुसरे पड़ाव की तरफ बढ़ना है।”

ब्राह्मण पुत्र ने कहा, मैं बिलकुल ऐसा ही करूंगा, लेकिन दूसरे पड़ाव से पहले मैं अपने घर जाना चाहता हूं। योगी ने कहा, बिलकुल घर जाओ। घर जाने से पहले गुणकार ने सिद्ध पुरुष अपने परिवारवालों के लिए उपहार मांगे। योगी ने अपने साधना की शक्ति से उसे घरवालों के लिए कई उपहार दिए। फिर गुणकार ने पैसों की इच्छा जताई, योगी वो भी अपनी शक्ति से उसे दे दिए। एक आखिर बार उसने अपने लिए अच्छे कपड़े की मांग की और वो भी योगी ने पूरा कर दिया।

यह सब चीजें लेकर गुणकार अपने घर पहुंचा, उसे देखकर उसका काफी हैरान हो गया। वह अपने साथ इतने सारे उपहार और पैसे लेकर आया था, तो ऐसे में उसके ब्राह्मण पिता ने पूछा, बेटा ये सब कहीं तुम चोरी कर के तो नहीं लाए हो। ब्राह्मण पुत्र ने अपने ऊपर गर्व करते हुए कहा, पिताजी मैंने कुछ ऐसा हासिल कर लिया है, जिसकी सहायता से मैं हर किसी की इच्छाओं को पूरा कर सकता हूं। ब्राह्मण ने उसे सावधान रहने और अहंकार से बचने की सलाह दी। कुछ समय घर में रहने के बाद वह वापस सिद्ध पुरुष के पास पहुंच गया।

वापस लौटने के बाद एक फिर से गुणकार ने साधना शुरू कर दी। वह बहुत लगन से ध्यान लगा रहा था और ऐसे उसने दूसरा पड़ाव भी पूरा कर लिया। पड़ाव पूरा होने के बाद उसे भी वही विद्या हासिल हो गई। जब वह उस विद्या को हासिल करने के बाद योगी के पास पहुंचा, तो उसे देखकर योगी बहुत खुश हुआ। उसने गुणकार ने कहा, तुमने अब मेरी वाली विद्या हासिल कर ली है, तो मुझे तुम खाना खिलाओ। मुझे बहुत तेज भूख लगी है। ये सुनने के बाद गुणकार बहुत खुश हुआ और अपनी विद्या से योगी का पसंदीदा खाना सामने लेन के लिए मंत्र पढ़ने लगा। कुछ देर बाद भी जब खान सामने नहीं आया, तो वह बहुत नाराज हो गया और गुस्से में बोलने लगा मेरी विद्या काम क्यों नहीं कर रही है। मैंने इतनी मेहनत से साधना की लेकिन मुझे इसका फल क्यों नहीं मिल रहा है?

कहानी सुनाते-सुनते बेताल शांत हो गया और राजा से पूछा, गुणकार को साधना करने के बाद भी योगी जैसी सिद्धि हासिल क्यों नहीं हुई। राजा विक्रमादित्य ने कहा-

“सबसे पहली बात कि गुणकार पूरी विद्या हासिल करने से पहले ही घर चला गया। दूसरा कारण यह है कि वह विद्या सिर्फ लोभ की वजह से पाना चाहता था। यदि आप किसी चीज को लालच के साथ हासिल करते हैं, तो उसका परिणाम बुरा ही होता है। सिद्धि हासिल करने के लिए व्यक्ति के मन में लालच नहीं होना चाहिए।”

बस फिर क्या था, राजा विक्रम का उत्तर सुनते ही बेताल हंसते-हंसते फिर से उनके कंधे से उड़ गया।

सीख (Moral of The Story)
ब्राह्मण कुमार की कथा से हमें ये सीख मिलती है कि किस भी विद्या को हासिल करने के लिए हमें सच्चे मन से साधना करनी चाहिए और मन में लालच बिलकुल नहीं होना चाहिए। लालच से किए गए किसी भी काम का आपको फल नहीं मिलेगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. ब्राह्मण कुमार की नैतिक कहानी क्या है?
ब्राह्मण कुमार की कथा का नैतिक यह है कि हमें लालच में आकर कभी भी कोई शिक्षा हासिल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि लालच के कारण हमें उस शिक्षा का फल प्राप्त नहीं होता है।

2. हमें लालच करने से क्यों बचना चाहिए?
अगर किसी व्यक्ति के मन में नेक काम को करने के पीछे लालच और लोभ छुपा होता है, तो आपका बनता हुआ काम रुक जाता है। इसलिए लालच को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दें।

निष्कर्ष (Conclusion)
इस कहानी का ये निष्कर्ष है कि इंसान को कोई भी शिक्षा हासिल करने का फैसला किसी लालच व लोभ की वजह से नहीं करना चाहिए और अपनी विद्या पर अहंकार हो जाए, तो वह सही समय पर काम नहीं आती।

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