सूअर और भेड़

सूअर और भेड़

सूअर और भेड़

यह कहानी सूअर और भेड़ के बीच संवाद पर आधारित है। चरवाहा सूअर को कसाई के लिए ले जा रहा होता है, जिससे वह जोर-जोर से चीखता है। भेड़ उसे शांत रहने को कहती है और कहती है कि वे भी पकड़ी जाती हैं, लेकिन वे नहीं चीखतीं। सूअर जवाब देता है कि उन्हें केवल ऊन के लिए ले जाया जाता है, जबकि उसे मांस के लिए मारा जाएगा।

सूअर और भेड़ :

रोज़ की तरह एक चरवाहा अपनी भेड़ों को घास के मैदान में चरा रहा था। तभी कहीं से एक मोटा सूअर वहाँ आ गया। जब चरवाहे की नज़र सूअर पर पड़ी, तो उसने उसे पकड़ लिया।

जैसे ही चरवाहे ने सूअर को पकड़ा, वो तेज आवाज़ में चीखने लगा और ख़ुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगा। लेकिन चरवाहे की पकड़ मजबूत थी। उसने सूअर के सामने और पीछे के दोनों पैर रस्सी से बांध दिए और उसे अपने कंधे पर लटकाकर कसाई के पास जाने लगा।

सूअर ज़ोर-ज़ोर से चीख रहा था और चरवाहा चला जा रहा था। मैदान में चर रही भेड़ें सूअर के इस व्यवहार पर बहुत चकित थीं। उनमें से एक भेड़ कुछ दूर तक चरवाहे के पीछे-पीछे गई और सूअर से बोली, “इस तरह चीखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती? चरवाहा रोज़ हममें से एक भेड़ को पकड़कर ले जाता है, लेकिन हम तो यूं नहीं चीखते। तुम तो बेकार में इतना उत्पात मचा रहे हो। शर्म करो।”

भेड़ की बात पर सूअर को बहुत गुस्सा आया। वह और जोर से चीखते हुए बोला, “चुप रहो! चरवाहा जब तुम लोगों को पकड़कर ले जाता है, तो उसे बस तुम्हारा ऊन चाहिए होता है। लेकिन उसे मेरा मांस चाहिए। जब तुम्हारी जान पर बनेगी, तब बहादुरी दिखाना।”

सीख (Moral of The Story)
यह कहानी सूअर और भेड़ के संवाद के माध्यम से एक गहरी सीख देती है। यह हमें सिखाती है कि हर किसी की परिस्थितियाँ अलग होती हैं, और हमें दूसरों के संघर्षों को समझने और उनका सम्मान करने की कोशिश करनी चाहिए।

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