कछुआ और खरगोश की दौड़

कछुआ और खरगोश की दौड़

कछुआ और खरगोश की दौड़

यह कहानी एक खरगोश और एक कछुए की है, जो दौड़-प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। खरगोश अपनी तेज गति के भरोसे पेड़ के नीचे आराम करने लगता है, लेकिन उसकी यह लापरवाही उसे पीछे कर देती है। कछुआ अपनी स्थिरता और निरंतरता के साथ अंततः दौड़ जीत जाता है।

कछुआ और खरगोश की दौड़ : Kachhua Aur Khargosh Ki Daudh

एक खरगोश और एक कछुए में गहरी मित्रता थी ।

वे साथ-साथ घूमते थे, खेलते थे और हमेशा एक-दूसरे की मदद करते थे ।

एक बार खेल-खेल में दोनों ने दौड़-प्रतियोगिता करने की बात सोची । उनको बरगद के पेड़ तह पहुँचना था ।

यह पेड़ वहाँ से कुछ ही दूर एक गाँव के ठीक बाहर था ।

यह निश्चित हुआ कि जो वहाँ पहले पहुँचेगा, वही विजेता कहलाएगा ।

दौड़ शुरू हुई ।

खरगोश जो कि खूब तेज दौड़ता था और उछल-उछलकर चलता था, बड़ी तेजी से आगे निकल गया ।

कछुआ अपनी आदत के अनुसार चल रहा था ।

एकदम धीरे-धीरे ।

कुछ देर दौड़ने के बाद खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे कछुआ दूर तक कहीं दिखाई नहीं दिया ।

पास ही में एक ऊँचा घना पेड़ था । धीमी-धीमी हवा चल रही थी ।

खरगोश ने सोचा कि थोड़ा सुस्ता लेता हूँ फिर जल्दी से आगे बढ़ जाऊँगा ।

कछुए को तो यहाँ तक पहुँचने में अभी देर लगेगी ।

यह सोचकर वह पेड़ के नीचे लेट गया ।

ठंडी हवा ने उसे झटपट सुला दिया । उधर कछुआ धीरे-धीरे पेड़ की ओर बढ़ता जा रहा था ।

खरगोश काफी देर तक सोता रहा ।

जैसे ही उसकी आँख खुली, वह बरगद के पेड़ की ओर भागा ।

वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि कछुआ तो पहले से ही वहाँ पहुँच गया है ।

और इस तरह से धीरे-धीरे ही सही, पर लगातार चलकर कछुए ने प्रतियोगिता जीत ली ।

सीख (Moral of The Story)
निरंतरता और धैर्य के साथ किए गए प्रयास हमेशा फल देते हैं।
लापरवाही से नुकसान हो सकता है, चाहे आप कितने भी तेज हों।
सफलता के लिए अनुशासन और समर्पण आवश्यक है।

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